चंडीगढ़ : कैबिनेट मंत्री तरुणप्रीत सिंह सोंद ने केंद्र सरकार की “विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण (वीबी-जी राम जी)” की कड़ी आलोचना करते हुए इसे एक और “काला कानून” करार दिया है, जो सीधे तौर पर लाखों मनरेगा मजदूरों की रोजी-रोटी पर हमला करता है और वित्तीय बोझ राज्यों पर डालता है। मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सोंद ने कहा कि यह नई योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों, अनुसूचित जाति समुदायों और ग्रामीण मजदूरों को बुरी तरह प्रभावित करेगी जो गुजारे के लिए मनरेगा पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र “एक तीर से दो निशाने” साधने की कोशिश कर रहा है – पहला गारंटीशुदा रोजगार को कमजोर करके और दूसरा राज्यों पर वित्तीय बोझ डालकर भारत के संघीय ढांचे पर हमला कर रहा है।
मंत्री ने कहा कि जहां केंद्र का दावा है कि नई योजना मनरेगा के 100 दिनों के मुकाबले 125 दिनों का काम देगी, वहीं सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार पिछले साल औसतन सिर्फ 45 दिनों का काम मुहैया कराने में कामयाब रही। उन्होंने कहा कि बिना डिलीवरी के वादे करना भाजपा की आदत बन गई है। सोंद ने बताया कि पहले अकुशल मजदूरी के लिए मजदूरी पूरी तरह केंद्र द्वारा फंड की जाती थी और सामग्री की लागत 75:25 के अनुपात में साझा की जाती थी। नई योजना के तहत इसे बदलकर 60:40 कर दिया गया है, जिससे अकेले पंजाब पर सालाना लगभग ₹600 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
उन्होंने आगे चेतावनी दी कि नई योजना में खेती के पीक सीजन के दौरान काम की कोई गारंटी नहीं है, बेरोजगारी भत्ते के प्रावधान हटा दिए गए हैं, गांव स्तर के कामों के बारे में फैसले लेने का केंद्रीकरण कर दिया गया है, मंजूरशुदा कामों को सीमित कर दिया गया है और सोशल ऑडिट की जगह एआई-आधारित बायोमीट्रिक और जियो-टैगिंग प्रणालियां लगाई गई हैं, जो बाहर रह जाने को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करती हैं।
सोंद ने इस बात पर जोर दिया कि पंजाब में 70% मनरेगा मजदूर महिलाएं हैं और योजना को 10 महीनों तक सीमित करना उन्हें सीधा नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने घोषणा की कि ‘आप’ सरकार ने इस कदम के विरोध में प्रस्ताव पारित करने के लिए 30 तारीख को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है और सभी राज्यों से अपील की है कि वे मजदूरों के अधिकारों के इस खतरनाक रोलबैक के खिलाफ एकजुट हों।

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