जालंधर/सुल्तानपुर लोधी : राज्यसभा सांसद एवं पर्यावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से पंजाब के लिए बाढ़ प्रबंधन तथा हरिके पत्तन की डी-सिल्टिंग हेतु विशेष पैकेज जारी करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार ने अब भी इस दिशा में देरी की, तो आने वाले समय में पंजाब को और भी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
संत सीचेवाल ने बताया कि वर्ष 2020 में सतलुज दरया पर स्थित गिद्दड़पिंडी रेलवे पुल के नीचे तथा जून-जुलाई महीनों के दौरान बुड्ढा दरया से बड़े स्तर पर गाद निकाले जाने के कारण संबंधित क्षेत्र बाढ़ की भारी मार से बचा रहा था।
अपने पत्र में संत सीचेवाल ने अगस्त 2025 में पंजाब में आई भीषण बाढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस आपदा ने अभूतपूर्व तबाही मचाई थी। इसके बाद रावी दरया में आई बाढ़ ने तो सभी पुराने रिकॉर्ड ही तोड़ दिए। इन बाढ़ों के कारण माझा, मालवा और दोआबा क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ। सैकड़ों गांव प्रभावित हुए, बहुमूल्य जानें चली गईं, जबकि किसानों की धान की फसलें लगभग 100 प्रतिशत तक नष्ट हो गईं। सड़कों, सरकारी भवनों और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को भी भारी क्षति पहुंची।
हरिके पत्तन हेडवर्क्स का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जहां सतलुज और ब्यास नदियों का संगम होता है, वहां 1952-53 में बैराज बनने के बाद से आज तक एक बार भी डी-सिल्टिंग नहीं की गई है। लगभग 48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भारी मात्रा में गाद जमा हो चुकी है, जिसके कारण पानी स्टोरेज की क्षमता लगभग समाप्त हो गई है। बरसात के मौसम में चिट्टी बेईं, काली बेईं, सतलुज और ब्यास दरया बड़ी मात्रा में गाद और रेत लेकर आते हैं, जो हरिके पत्तन में जमा हो जाती है। पानी तो आगे राजस्थान की ओर चला जाता है, लेकिन गाद पंजाब के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है।
संत सीचेवाल ने कहा कि पंजाब की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और कृषि पूरी तरह पानी पर निर्भर करती है। पानी का भंडारण डैमों में होता है, जिनका नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। उन्होंने कहा, “जिस पंजाब ने देश का पेट भरा, आज वही पंजाब खुद पानी के लिए संघर्ष कर रहा है।” उन्होंने आगे बताया कि अगस्त माह में आई बाढ़ के कारण किसानों की बंजर हो चुकी जमीनों को दोबारा खेती योग्य बनाने के लिए पिछले पांच महीनों से सेवा कार्य चल रहा है। कई स्थानों पर खेतों में चार से पांच फुट तक गाद जमा है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर साल डैमों में आने वाले पानी के साथ गाद की मात्रा कितनी अधिक होती होगी।
*बॉक्स आइटम: 23 जल-भंडारों में 50 प्रतिशत से अधिक गाद जमा*
डैमों में गाद जमने के गंभीर मुद्दे को लेकर संत सीचेवाल ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन शून्यकाल के दौरान यह विषय उठाने का प्रयास किया था, लेकिन सदन में हंगामे के कारण यह संभव नहीं हो सका। इस संबंध में उन्होंने प्रश्न भी लगाया था, जिसके उत्तर में केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि देश के 439 जल-भंडारों में गाद जमा होने के कारण जल संग्रहण क्षमता में 19.24 प्रतिशत की कमी आ चुकी है। इनमें से 23 जल-भंडार ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक गाद जमा हो चुकी है। संत सीचेवाल ने कहा कि पंजाब पहले ही भू-जल की गंभीर कमी से जूझ रहा है। डैमों में जल भंडारण क्षमता घटने से राज्य की सिंचाई व्यवस्था और पेयजल सुरक्षा लगातार कमजोर होती जा रही है।

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