चंडीगढ़ : आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब ने महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) को खत्म करने और इसकी जगह तथाकथित विकसित भारत गारंटी फॉर एंप्लॉयमेंट एंड लाइवलीहुड मिशन ग्रामीण (वीबी-जी राम जी) लाने के केंद्र सरकार के कदम की कड़ी निंदा की है। पार्टी ने इसे देशभर के ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों, सम्मान और रोजी-रोटी की सुरक्षा को कमजोर करने के इरादे से उठाया गया “सोचा-समझा कदम” बताया है।
‘आप’ पंजाब के प्रवक्ता नील गर्ग ने पार्टी नेता सफल हरप्रीत सिंह के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार लगातार खोखले नारों और सियासी नाटकों पर निर्भर रही है। अब यह सरकार समाज के सबसे गरीब वर्गों के लिए बनाई गई कल्याणकारी गारंटियों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म कर रही है।
गर्ग ने कहा कि यह सिर्फ नाम बदलने या महात्मा गांधी का नाम हटाने का मामला नहीं है। असली मुद्दा यह है कि केंद्र ने दरअसल मनरेगा के खात्मे का ऐलान कर दिया है और टीवी बहसों व ध्यान भटकाने वाली चीजों की आड़ में अपना मजदूर विरोधी एजेंडा छुपाने की कोशिश कर रहा है।
गर्ग ने चेतावनी दी कि 12 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण मजदूर, जिनके पास फिलहाल मनरेगा जॉब कार्ड हैं, इस नए बिल से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। भले ही सरकार काम के गारंटीशुदा दिन 100 से बढ़ाकर 125 करने का दावा कर रही है, लेकिन प्रस्तावित कानून की बारीकियां एक खतरनाक हकीकत को उजागर करती हैं।
गर्ग ने कहा कि नए बिल की धारा 68 काम की गारंटी नहीं देती, बल्कि इसमें काम देने से इनकार करने की बात शामिल है। उन्होंने बताया कि इसमें कहा गया है कि खेती के सीजन के 60 दिनों के दौरान रोजगार देने की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। सवाल यह है कि यह कौन तय करेगा कि किसी मजदूर को खेती में काम मिला या नहीं? उसका परिवार उन 60 दिनों में कैसे गुजारा करेगा?
मनरेगा के तहत रोजगार की मांग का आकलन जमीनी स्तर पर होता था, जिसमें मजदूर सीधे पंचायत या सरपंच के पास पहुंचते थे। गर्ग ने सवाल किया कि अब ग्रामीण मजदूर रोजगार कैसे हासिल करेंगे?
क्या एक गरीब मजदूर को अब काम के लिए प्रधानमंत्री के पास पहुंचना पड़ेगा? उनका तो सरपंच तक पहुंचना भी मुश्किल था। यह नीति रोजगार को जमीनी स्तर से पूरी तरह काट देती है और सारी शक्ति दिल्ली में केंद्रित कर देती है।
गर्ग ने चेतावनी दी कि रोजगार गारंटी को कमजोर करने से लेबर मार्केट में बाढ़ आ जाएगी, जिससे ग्रामीण मजदूरों का शोषण बढ़ेगा। मनरेगा ने यह सुनिश्चित किया था कि एक मजदूर ईमानदारी से रोजी-रोटी कमा सके और घर का चूल्हा जलता रखे। यह नई योजना उस बुनियादी सम्मान पर सवाल खड़ा करती है।
‘आप’ प्रवक्ता ने उजागर किया कि नया बिल संघीय सिद्धांतों को बुरी तरह कमजोर करता है। पहले केंद्र 90% खर्च उठाता था, जबकि राज्य 10% का योगदान देते थे। नई योजना के तहत यह बोझ 60:40 के अनुपात में बदल जाएगा, जिससे पहले से वित्तीय संकट झेल रहे राज्य और गहरे संकट में धंस जाएंगे।
अब केंद्र तय करेगा कि किस राज्य को कितना काम और फंडिंग मिलेगी। पिछले 12 सालों से देखा गया है कि मोदी सरकार विपक्ष शासित राज्यों के साथ कैसे भेदभाव करती आ रही है। पंजाब खुद इससे पीड़ित है, क्योंकि उसके आरडीएफ जैसे फंड अभी भी रोके हुए हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर राज्यों को केंद्र द्वारा तय फंड से ज्यादा रोजगार की जरूरत पड़ती है, तो उन्हें 100% खर्च खुद उठाना होगा, जिससे बड़े पैमाने पर ग्रामीण रोजगार असंभव हो जाएगा।

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