कहा, विश्व प्रसिद्ध कार्यक्रम के ऐतिहासिक 150वें संस्करण का हिस्सा बनकर गर्व महसूस हो रहा है
जालंधर : पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने शनिवार को शास्त्रीय संगीत को लोगों की सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम बताते हुए युवाओं से देश की सबसे पुरानी और समृद्ध परंपराओं में से एक भारतीय शास्त्रीय संगीत को सही अर्थों में अपनाने का आह्वान किया।
राज्यपाल श्री देवी तालाब मंदिर में 150वें ऐतिहासिक हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सम्मेलन पिछली डेढ़ सदी से पारंपरिक भारतीय संगीत की ज्योति को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
राज्यपाल ने कहा कि वह इस विश्व-प्रसिद्ध सम्मेलन के 150वें ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इस अवसर पर डिप्टी कमिश्नर डा. हिमांशु अग्रवाल, पुलिस कमिश्नर धनप्रीत कौर, पंजाब के पर्यटन एवं सांस्कृतिक मामलों के सलाहकार दीपक बाली, हरिवल्लभ महासभा के चेयरमैन शीतल विज और प्रधान पूर्णिमा बेरी भी उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि यह वर्ष विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष और सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती को दर्शाता है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में संगीत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए श्री कटारिया ने कहा कि देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाओं ने जन-जागरण और स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती प्रदान की। उन्होंने कहा कि हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन भारत की समृद्ध संगीतमय और सांस्कृतिक विरासत को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
राज्यपाल ने इस बात पर जोर दिया कि युवा पीढ़ी को ऐसे उत्सवों से परिचित करवाना अत्यंत आवश्यक है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का सार दर्शाते है। उन्होंने कहा कि यह गौरव की बात है कि जलंधर करीब 150 वर्षों से दुनिया के सबसे पुराने शास्त्रीय संगीत उत्सवों में से एक की मेजबानी कर रहा है, जो उभरते कलाकारों को वैश्विक मंच प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित कर रहा है।
प्रबंधक समिति के प्रयासों की सराहना करते हुए श्री कटारिया ने कहा कि उनके समर्पण ने जालंधर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। उन्होंने भाग लेने वाले कलाकारों का सम्मान किया और उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की सेवा जारी रखने की अपील की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि युवाओं को अपनी सांस्कृतिक और संगीतमय विरासत से जोड़ना समय की मांग है।

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